
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, कल की पीड़ित
नारी।
कितनी
है खुश आज ओढ़कर, दुहरी
ज़िम्मेदारी।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, खेत खड़ा है
भूखा।
अन्न
देखकर गोदामों में, खुलकर
हँसा बिजूखा।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, फसल बाढ़ ने
खाई।
वे
फाँसी पर झूल रहे, ये, सर्वे करें हवाई।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, बात नहीं यह
छोटी।
कल
उसको खाते थे हम, अब, हमें खा रही
रोटी।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, यह ऋतु
बारहमासी।
पुत्र
विदेशी साहब, घर
में, पिता हुए
बनवासी।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, हतप्रभ है
योगासन।
शीर्षासन
में खड़ा आमजन, नेता
करें शवासन।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, हर सच्चाई
नंगी।
खिन्न
हुआ मन, देख देश की, तस्वीरें दो
रंगी।
-कल्पना रामानी
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