रखती उसको अंग लगाकर।
चलती उसके संग लजाकर।
लगे सहज उसका अपनापन।
क्या सखि, सजना?
ना सखि, दामन!
2)
दिन में तो वो खूब तपाए।
रात कभी भी पास न आए।
फिर भी खुश होती हूँ मिलकर।
क्या सखि साजन?
ना सखि, दिनकर!
3)
वो अपनी मनमानी करता।
कुछ माँगूँ तो कान न धरता।
कठपुतली सा नाच नचाता।
क्या सखि साजन?
नहीं, विधाता!
४)
भरी भीड़ में पास बुलाया।
गोद उठाकर चाँद दिखाया।
मन पाखी बन सुध-बुध भूला।
क्या सखि साजन?
ना री झूला!
५)
दूर-दूर के नवल नज़ारे।
उसकी आँखों देखूँ सारे।
कभी न देता मुझको धोखा।
क्या सखि साजन?
नहीं, झरोखा!
६)
रातों को वो मिलने आता।
नित्य नया इक रूप दिखाता।
लाज न आए, कैसा बंदा?
क्या सखि साजन?
ना सखि, चंदा!
७)
आते जाते मुझे निहारे।
पल-पल मेरा रूप सँवारे।
भला लगे चिकना उसका तन।
क्या सखि सजना?
ना सखि दर्पन!
८)
साथ चले जब सीना ताने।
बात न वो फिर मेरी माने।
हाथ छुड़ाकर भागा जाता।
क्या सखि साजन?
ना सखि, छाता!
९)
जब तब कर्कश बोल सुनाए।
मुँह खोले तो जी घबराए।
पाहून को दे रोज़ बुलौवा।
क्या सखि, साजन?
ना सखि, कौवा!
१०)
उसका काला रंग न भाए।
गुण भी कोई नज़र न आए।
फिर भी लट्टू है उसपे मन।
क्या सखि साजन?
ना सखि, बैंगन!
-कल्पना रामानी
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