काटो अपने मनस से, हे प्राणी, अविवेक।
माया जोड़ें क्यों भला, गर हो पूत सपूत।
जोड़ी वो किस काम की, गर हो पूत कपूत।
गुरुजन का आदर करें, मन से हो आभार।
सदा शिष्य कहलाइए, बढ़े ज्ञान भंडार।
धन जोड़ा तो व्यर्थ है, जोड़ो नेकी नाम।
होता हर शुभ काम का, भला सदा अंजाम।
भला नहीं जग का किया, बुरी नहीं यह बात।
मगर बुरा मत कीजिये, भली यही इक बात।
काल बनें जो जीव के, करें न वो निर्माण।
करें वही जो कर सके, जीवों का कल्याण।
तन जिनका परदेस में, मन में बसता देश।
जोड़ा अंतर्जाल ने, दुविधा रही न शेष।
-कल्पना रामानी
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