अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Saturday 21 July 2012

सुबह की सैर


जितनी सुंदर क्यारियाँ, उतने सुंदर फूल।
रक्षा कवच बने हुए, साथ सजे हैं शूल।

 अद्भुत कुदरत की छटा, करती ह्रदय विभोर।
पुलकित शबनम से सजी, कितनी सुंदर भोर!

पंछी कलरव कर रहे, भँवरे गुनगुन गान।
दूर कहीं से आ रही, कुहू कुहू की तान।

शुद्ध हवा मन भा रही, ठंडी ठंडी धूप।
नयनों को सुख दे रहा, प्रातः का यह रूप।

झूलों पर छाया हुआ, किलकारी का शोर।
नन्हें बालक बाग में, झूम रहे चहुं ओर।

सूर्य किरण समझा रही, क्यों सेहत से बैर।
निकल पड़ें फुटपाथ पर, करें सुबह की सैर।

-कल्पना रामानी 

1 comment:

nayee dunia said...

waah bahut sundar...subah ki sair ne to taza kar diya...

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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