
फागुन लाया प्रेम की, सतरंगी बौछार।
मिलकर आज मनाइए, होली का त्यौहार॥
कली खिली कचनार की, सुन फागुन का राग।
आम्र बौर बौरा गए, लगे सुनाने फाग॥
होली के हुड़दंग से, उड़ी धूल ही धूल।
रंग खेलने आ गए, टेसू के ये फूल॥
गुब्बारों की मार से, ऐसी मची धमाल।
उड़े हास्य के बुलबुले, हाल हुए बेहाल॥
नए नज़ारे रंग के, नए नए अंदाज़।
निकल चलो मैदान में,बुला रहा ऋतुराज॥
सरसों फूली देखकर, खुश हो रहे किसान।
होली मिलने चल पड़े, पूर्ण हुए अरमान॥
मिलन सभाएँ सज गईं, बहके ढ़ोल मृदंग॥
सभी थिरकने लग गए, पीकर केसर भंग॥
रंगों का सैलाब है, पकवानो का दौर।
भंग भरे प्याले सजे, ये दिल माँगे और॥
----------कल्पना रामानी
No comments:
Post a Comment