अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।
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Tuesday 11 February 2014
फागुन लाया प्रेम की...
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फागुन लाया प्रेम की...
फागुन लाया प्रेम की, सतरंगी बौछार।
मिलकर आज मनाइए, होली का त्यौहार॥
कली खिली कचनार की, सुन फागुन का राग।
आम्र बौर बौरा गए, लगे सुनाने फाग॥
होली के हुड़दंग से, उड़ी धूल ही धूल।
रंग खेलने आ गए, टेसू के ये फूल॥
गुब्बारों की मार से, ऐसी मची धमाल।
उड़े हास्य के बुलबुले, हाल हुए बेहाल॥
नए नज़ारे रंग के, नए नए अंदाज़।
निकल चलो मैदान में,बुला रहा ऋतुराज॥
सरसों फूली देखकर, खुश हो रहे किसान।
होली मिलने चल पड़े, पूर्ण हुए अरमान॥
मिलन सभाएँ सज गईं, बहके ढ़ोल मृदंग॥
सभी थिरकने लग गए, पीकर केसर भंग॥
रंगों का सैलाब है, पकवानो का दौर।
भंग भरे प्याले सजे, ये दिल माँगे और॥
----------कल्पना रामानी
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पुनः पधारिए
आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।
धन्यवाद सहित
--कल्पना रामानी
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