छन्न
पकैया, छन्न पकैया, भरा हुआ है
मेला।
कितना
है रोमांचक देखो, यह
सर्कस का खेला ।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, ये भोले से
मुखड़े।
खुशियाँ
बाँट छिपाते अपने, हिय
में दारुण दुखड़े।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, आहा!
गजब तमाशा।
दौड़
रही रस्सी के पुल पर, एक
असीमित आशा।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, जग इससे
अनजाना।
आज
यहाँ, कल कहाँ
मिलेगा, इनको ठौर
ठिकाना।
छन्न
पकैया, छन्न पकैया, स्वाँग धरे
ये जोकर।
जन-जन
को तो हँसा रहे हैं, अपने
मन में रोकर।
-कल्पना रामानी
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