महती महिमा योग की, जिसने जानी मीत
नहीं सताएगी उसे, गर्मी हो या शीत।
जुड़ा हुआ है स्वास्थ्य से, सुख दुख का संजोग।
मूल मंत्र यह जानिए, योग भगाए रोग।
भोग संग यदि योग भी, हो जीवन का अंग।
धूमिल ना होगा कभी, यौवन का नवरंग।
दिनचर्या यदि चुस्त हो, और स्वस्थ हो सोच।
होगी रक्त प्रवाह से, अंग-अंग में लोच।
योग मनुष के मेटता, मन से दुष्ट विचार।
पोषित होते प्रेम के, भाव सबल, सुविचार।
प्रथम सहेजें स्वास्थ्य को, हों कितने भी व्यस्त।
बिना सुरक्षा कोट भी, हो जाता है ध्वस्त।
यह ऐसा गुरुमंत्र है, करें अगर नित जाप।
बदलेंगे वरदान में, जीवन के अभिशाप।
कुदरत ने यह कीमती, दिया मुफ्त उपहार।
ठुकराकर मत कीजिये, अपने पैर प्रहार।
-कल्पना रामानी
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