अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Saturday, 15 June 2013

चली मुग्ध भागीरथी



उच्च हिमालय पार कर, मैदानों की ओर।
चली मुग्ध भागीरथी, होकर भाव विभोर।
 
गो मुख से निकली चली, वेगमई  अविराम
धरती पर हरिद्वार में, मिला उसे विश्राम।
 
गंगा से ही विश्व में, भारत की पहचान।
लाखों जन जुटते यहाँ, करते पावन स्नान।
 
सलिला पाप विनाशिनी, करती रोग निदान।
दुख हरणी,सुख दायिनी, देती जीवन दान।
 
आए जो इस बार हम, गंगा माँ के द्वार।
कहीं नहीं हमको दिखी, इसकी निर्मल धार।
 
रोग मुक्त सबको किया, रोगी हो गई आप।
दूषित खुद होने लगी, धोते धोते पाप।
 
गंगा मैली हो चली, कहिए दोषी कौन। 
चुप चुप है सरकार भी, जनता भी है मौन।
 
जज़्बा है गर शेष कुछ, शेष अगर अनुराग। 
वैतरणी को तार दे, जाग मनुष अब जाग।
 
क्या समझाए लेखनी, बाँट रही जज़्बात। 
बात कहे यह कल्पना, करें न माँ पर घात।


-कल्पना रामानी

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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