अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Friday 5 July 2013

कहते चम्पा पेड़ को






कहते चम्पा पेड़ को, जंगल का सिरमौर।
चलता रहता साल भर, गुल खिलने का दौर।

इसके फूलों का बड़ा, अलग एक अंदाज़।
एक वृंत पर हर सुमन, करता एकल राज।

यूँ तो खिलते पुष्प ये, पूरे बारह मास।
लेकिन अंत बसंत का, इनका मौसम खास।

गर्मी इनकी मीत है, इन्हें धूप से नेह।
निखरे तपकर ताप से, कंचन वर्णी देह।

जन जीवन जब छेड़ता, धूप-स्वेद से जंग।
वन्य जीव अठखेलियाँ, करते चम्पा संग।

भँवरों को भाती नहीं, इनकी गंध विशेष।
फिरें उदासी ओढ़कर, ये कलियों के देश।

पुष्प सूखते पेड़ पर, देकर मीठी गंध।
पवन बाँटती विश्व में, इनकी सरस सुगंध।

हरते हैं जन जीव के, जीवन का हर शूल।
अब शूलों से रक्ष हों, ये प्यारे बन-फूल।

जन्नत हो भूलोक पर, अगर हरे हों पेड़।
मीत! कहे यह कल्पना, कुदरत को मत छेड़।



-कल्पना रामानी  

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--कल्पना रामानी

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