हुई विदाई ग्रीष्म की, आया वर्षा काल।
सोंधी मोहक गंध से, तन मन हुआ निहाल।
मुक्त हुए तन स्वेद से, शीतल चली बयार।
मन मयूर गाने लगे, झूम मेघ मल्हार।
कहीं चमकती बिजलियाँ, कहीं घटा घनघोर।
मन को पुलकित कर रहा, बादल का यह शोर।
सूरज कब आया,गया, दिन बीता कब शाम।
बरखा के सत्कार में, भूले प्रश्न तमाम।
भीगी भीगी शाम से, हर्षित तन,मन,रोम।
इन्द्र धनुष सहसा दिखा, सजा रंग से व्योम।
बूँदें टप टप गा उठीं, बारिश में भरपूर।
खिले फूल कलियाँ हँसीं, नाचे मगन मयूर।
मिट्टी की खुशबू उडी, घुले स्नेह
के रंग।
पहली बारिश आ गई, चाय पकौड़ी
संग।
-कल्पना रामानी
3 comments:
सभी दोहे वर्षा का सजीव चित्रण करते हुए मन मोहते हैं।
लाजवाब !
सुन्दर सामयिक सृजन ....
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