ऋतु बसंत की आ गई, उत्सव का है दौर।
कोयल सुर में गा उठी, लदे आम पर बौर।
गुलमोहर कचनार भी, खिले खिले हैं आज।
पुष्प पल्लवों से सजा,ऋतु बसंत का ताज।
जंगल में मेला लगा, पशु पक्षी थे साथ।
चर्चाओं में खास थी, ऋतु रानी की बात।
कमी न हो जब अन्न की, जल के स्रोत अनंत।
महके हरित वसुंधरा, होगा सदा बसंत।
सरसों फूली खेत में, स्वर्णलता सी धूप।
देखा यहाँ बसंत का, अद्भुत मोहक रूप।
कलियाँ दावत दे रहीं, मधुर मधुर मकरंद।
गीत सुनातीं तितलियाँ, भँवरे लिखते छंद।
कंत! पूछती कामिनी, मुझसे सुंदर कौन?
कलियों पर नज़रें टिकीं, प्रश्न हो गया मौन। -कल्पना रामानी
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