अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Tuesday, 15 January 2013

ऋतु बदली सूरज चला

ऋतु बदली, सूरज चला, उतरायन की ओर।
तिल-तिल दिन बढ़ने लगे, घटा शीत का ज़ोर।

ग्रह, तारे औ राशियाँ, सभी प्रकृति के दास।
सार मनुज यदि जान ले, क्यों फिर भोगे त्रास।

मन पतंग से बाँध लें, मानवता की डोर।
लिखें इबारत प्रेम की, भेजें चारों ओर।

सजी पतंगें उड़ चलीं, नील गगन की ओर।
बात हवा से कर रही, संग मनचली डोर।

तिल पपड़ी औ रेवड़ी, भाया गुड का स्वाद।
कटी पतंगें देखकर, आया बचपन याद। 

-कल्पना रामानी  

No comments:

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

Followers