कोई पाए दो गुना, कोई वापस जाय।
समदरसी कहकर गए, तुमको संत फ़क़ीर।
पर है सबकी क्यों भला, अलग-अलग तक़दीर।
हम तो प्राणी तुच्छ हैं, तुम सबके करतार।
दाता, फिर यह किसलिए, भेद भाव का वार।
जाएँ किसकी हम शरण, बतलाओ हे ईश।
धरती पर दिखता नहीं, कोई न्यायाधीश।
नाथ तुम्हारे राज्य में, हम क्यों हुए अनाथ।
माना तुमको ही सखा, फिर भी दिया न साथ।
प्रभुजी, कर दो अब हमें, बीच भँवर से पार।
या निज हाथों खोल दो, मुक्ति धाम के द्वार।
-कल्पना रामानी
1 comment:
ईश्वर से मन की बात कहते बहुत सुन्दर दोहे ....
बहुत बधाई दीदी
सादर ...ज्योत्स्ना शर्मा
Post a Comment