अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Sunday 28 October 2012

योग स्वास्थ्य का मूल है

योग स्वास्थ्य का मूल है, प्रात भ्रमण है प्राण। 
रहे निरोगी तन सदा, मिले कष्ट से त्राण।
 
सहज हास्य से हो अगर, हर दिन की शुरुआत। 
शुद्ध रक्त संचार हो, रोग करे नहिं घात।
 
प्रेम रसों से सींचिए, जीवन का उद्यान। 
खुशियों के अंकुर उगें, मिले सुफल वरदान।
 
पर हित को तत्पर रहें, बड़े पुण्य का काम। 
मान बढ़ेगा आपका, होगा ऊँचा नाम
 
तीखी है तलवार से, शब्द बाण की धार। 
यह तन को घायल करे, उसका मन पर वार 
 
भाव सहज,भाषा सरल,रचना हो निर्दोष। 
मान रचयिता को मिले,पाठक को संतोष।
 
बुरा न देखो ना सुनो, और बुरा मत बोल। 
महापुरुष कहकर गए, वचन बड़े अनमोल।
 
एक द्वार गर बंद है,काहे का संताप। 
सौ दरवाजे सामने, खुल जाएँगे आप।  
 
गुण के पौधे रोपिए, महकाएँ मन प्राण। 
सींचें निश्छल प्रेम से, हो सबका कल्याण।
 
बचपन तो नादान था,यौवन, शिक्षा ज्ञान। 
स्वर्ण काल है सृजन का,जीवन संध्या जान।
 
कथनी को पूरा करें, कभी न मानें हार। 
अडिग रहें निज वचन पर, पूजेगा संसार।
 
मन में पलता बैर है, भाव प्रबल प्रतिशोध। 
कहलाता इन्सान वो, मूढ़, कुटिल, निर्बोध।

मुश्किल कुछ होता नहीं, दृढ़ हों यदि संकल्प। 
नई दिशाएँ देखिये, ढूँढें नए विकल्प।
 
कल की बातें भूलिए, करें आज की बात। 
नया लक्ष्य हो सामने, करें एक दिन-रात।


-कल्पना रामानी

1 comment:

Vinay said...

बहुत सुंदर दोहे!


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पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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