माँ लक्ष्मी दे दो हमें, ऐसा तुम वरदान।
तिमिर विश्व का दूर कर, फैलाएँ
सदज्ञान।
युग युग से जलते रहे, दीप हमारे
द्वार।
माँ तुम आकर मेट दो, अंतरतम इस
बार।राह दिखाओ माँ हमें, बढ़ें कदम जिस छोर
दीपक प्रेम-प्रकाश के, जगमग हों उस ओर।
चाह नहीं धन की हमें, नहीं चाहते ताज।
रावण राज्य विनष्ट हो, चाहें पुनः सुराज।
रावण राज्य विनष्ट हो, चाहें पुनः सुराज।
जहाँ अँधेरे घोर हों, मायूसी दिन
रात।
बन प्रकाश जाना वहाँ, दीवाली की रात।
बन प्रकाश जाना वहाँ, दीवाली की रात।
जन कल्याणी काट दो, जन-जन-मन का
क्लेश।
रिद्धि-सिद्धि, सुख सम्पदा, का हो बहुल प्रवेश। -कलपना रामानी
No comments:
Post a Comment