जंगल में अतिक्रमण की, जब से सुलगी आग।
वन जीवों में मच गई, सहसा भागमभाग।
पेड़ सभी कटने लगे, देख न कोई आस।
हिरण चौकड़ी भूलकर, कोने खड़ा उदास।
कल तक जो रानी बनी, देती थी आदेश।
सुपर सयानी लोमड़ी, भूल गई उपदेश।
आसमान पर छा रही, खूब घटा घनघोर।
मगर मोर चुपचाप है, नहीं मचाता शोर।
चिंतित है खरगोश भी, सोच रहा खामोश।
गलती तो इंसान की, फल भोगे निर्दोष?
भेड़ें घर वापस चलीं, खाली पेट निराश।
वन ही बंजर हो गए, कहाँ मिलेगी घास।
सूँड उठा, चिंघाड़ता, भाग रहा गजराज।
फिर से नई तलाश में, किया पलायन आज।
छोड़ गुफा पागल बना, नाहर रहा दहाड़।
वन-जीवों पर खौफ का, टूटा आज पहाड़।
-कल्पना रामानी
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