प्रातः का तुम मंत्र हो, तुम्हें नमन शत बार।
त्याग तुम्हारा जग विदित, ममता प्रेम अगाध।
हृदय हिलोरें मारती, संतति सुख की साध।
किया बाल-हठ कृष्ण ने, माँ तुम कितनी धीर।
पुत्र प्रेम हित युक्ति से, चाँद उतारा नीर।
माँ तुम केवल दायिनी, लेने की कब चाह।
सुख वारे संतान पर, दुख की चुन ली राह।
दो बाहों का पालना, शैशव का था कोट।
सदा सँभाला अंक में, कभी न आई चोट।
तुमसे ही जग को मिला, जीव सृजन विस्तार।
तव चरणों में पा लिया, इस जीवन का सार।
सखा तुम्हीं, शिक्षक तुम्हीं, मिला तुम्हीं से ज्ञान।
सत्कर्मों की सीख से, पाया यश सम्मान।
संग खेलकर हारती, बचपन की तुम मीत।
यादों में अब तक बसी, माँ वो अपनी जीत।
शिकन भाल संतान के, देख हुई हैरान।
पल भर में हल सोचती, करती सहज निदान।
मुक्त तुम्हारे कर्ज़ से, कैसे हो संतान।
हों सपूत माँ वत्सले, दो ऐसा सदज्ञान।
-कल्पना रामानी
2 comments:
bahut khoob didi aapke dohe nit pratidin phoolo ki khushbu bikher rahe hai ,sabhi ek se badhkar ek
namskaar kalpna ji bahut sundr dohe hai ma to jagat ka saar hai ek shishu ke lie sbase sundr vardan .
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