अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Tuesday 2 October 2012

सोच रहे थे पेड़


सड़क किनारे के सभी, सोच रहे थे पेड़
मानव से चलकर कहें, अब मत हमको छेड़।



 
फल छाया देंगे नहीं, नहीं सहेंगे दाब
सींचो पहले प्रेम से, पाओ सुफल जनाब।
 
हमने छाया दी तुम्हें, कैसा ये अंधेर
तुमने हमको काटकर, किया काष्ठ का ढेर।
 
बेच बेच फल फूल से, फैलाया व्यापार
करते रहे निरीह पर, फिर भी अत्याचार।
 
धिक्कृत तेरा स्वार्थ है, धिक्कृत मायामोह
हम भी तुमसे कम नहीं, कर देंगे विद्रोह।
 
दिया नहीं छीना सदा, कैसे तुम उद्दंड
करतूतों का अब तुम्हें, धरती देगी दंड।


-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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