सड़क किनारे के सभी, सोच रहे थे पेड़
मानव से चलकर कहें, अब मत हमको छेड़।
फल छाया देंगे नहीं, नहीं सहेंगे दाब
सींचो पहले प्रेम से, पाओ सुफल जनाब।
हमने छाया दी तुम्हें, कैसा ये अंधेर
तुमने हमको काटकर, किया काष्ठ का ढेर।
बेच बेच फल फूल से, फैलाया व्यापार
करते रहे निरीह पर, फिर भी अत्याचार।
धिक्कृत तेरा स्वार्थ है, धिक्कृत मायामोह
हम भी तुमसे कम नहीं, कर देंगे विद्रोह।
दिया नहीं छीना सदा, कैसे तुम उद्दंड
करतूतों का अब तुम्हें, धरती देगी दंड।
-कल्पना रामानी
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