कदम
बढ़ाएँ साथ मेँ, हरित
क्रांति की ओर।
हरियाली
से पाट दें,
हर
पथ हर उद्यान।
सुधरेगा
पर्यावरण,
जन
जन दे श्रम दान।
मुक्त
ह्रदय से मानिए, कुदरत
का आभार।
मिला
उसी की गोद में, हरा
भरा संसार।
हरियाली
खोई अगर,
क्या
होगा अंजाम?
होगी
बाँझ वसुंधरा, जीव
लुप्त हे राम!
बीज
बीज मेँ प्राण हैं, दें
उनको आकार।
बोएँ
सींचें प्रेम से, धरती
करे पुकार।
पेड़
घट गए खो गई, ठंडी
शीतल छाँव।
सड़कें
अंगारे बनी,
झुलसाती
हैं पाँव।
हर
दिन फूल गुलाब हों, रातें
चम्पा बेल।
हरियाली
खोने न दें,
करें
सृष्टि से मेल।
दिखता
है अंगार सा, प्यारा
पुष्प पलाश।
पर
नयना शीतल करे, देकर
सौम्य प्रकाश।
सड़क
किनारे पेड़ हों, गुलमोहर
कचनार।
रखिए
सदा सहेजकर,
कुदरत
के उपहार।
-कल्पना रामानी
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