अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Sunday 2 September 2012

नारी सदा महान


जब ब्रह्मा ने था रचा, सुंदर यह संसार। 
लक्ष्मी जी ने खुद लिया, नारी का अवतार।
 
हर नारी होती सदा, रूप गुणों की खान। 
ज्ञान चक्षु मनु खोलकर, उसका गुण पहचान।
 
अगर आपसे हो गया, नारी का अपमान। 
शापित होंगे आप ही, बात लीजिये जान
 
प्रेम, प्रेम से पाइए, नारी हृदय विशाल। 
स्नेह सुरा, सुख, सम्पदा, से हों मालामाल।
 
नारी रूठी सुख गया, जाती लक्ष्मी छोड़। 
अपने पावन प्रेम से, उसके मन को जोड़।
 
कमतर नर से यह नहीं, चाहे कोई देश।
कहीं उड़े नभ में कहीं, श्रम जीवी का वेश।
 
भोग छोडकर योगिनी, बनती हित संतान। 
कर देती मातृत्व पर, सारे सुख कुर्बान।    
 
अडिग रहे हर हाल में, चाहे पड़े अकाल
संचित दानों से करे, नारी सदा कमाल।
 
अपनों के सुख के लिए, अपने सुख को भूल। 
फूल सौंप परिवार को, ले लेती खुद शूल
 
सक्षम है हर हाल में, हिम्मत की यह खान। 
नमन करें इस देवि को, नारी सदा महान।


-कल्पना रामानी

4 comments:

shashi purwar said...

waah bahut sundar didi ,ek se badhkar ek dohe .badhai blog bhi bahut sundar ho gaya hai ,............:)

Unknown said...

Maja aa gaya padkr...badhai!!!

Anonymous said...

Wowww....bahut hi sundar hai masi!!! :) Shilpa

कविता रावत said...

नारी बिना सूना है यह संसार ......फिर है करते उसपर नामसझ अत्याचार
..बहुत सुन्दर सुकोमल रचना

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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