लक्ष्मी जी ने खुद लिया, नारी का अवतार।
हर नारी होती सदा, रूप गुणों की खान।
ज्ञान चक्षु मनु खोलकर, उसका गुण पहचान।
अगर आपसे हो गया, नारी का अपमान।
शापित होंगे आप ही, बात लीजिये जान।
प्रेम, प्रेम से पाइए, नारी हृदय विशाल।
स्नेह सुरा, सुख, सम्पदा, से हों मालामाल।
नारी रूठी सुख गया, जाती लक्ष्मी छोड़।
अपने पावन प्रेम से, उसके मन को जोड़।
कमतर नर से यह नहीं, चाहे कोई देश।
कहीं उड़े नभ में कहीं, श्रम जीवी का वेश।
भोग छोडकर योगिनी, बनती हित संतान।
कर देती मातृत्व पर, सारे सुख कुर्बान।
अडिग रहे हर हाल में, चाहे पड़े अकाल।
संचित दानों से करे, नारी सदा कमाल।
अपनों के सुख के लिए, अपने सुख को भूल।
फूल सौंप परिवार को, ले लेती खुद शूल।
सक्षम है हर हाल में, हिम्मत की यह खान।
नमन करें इस देवि को, नारी सदा महान।
-कल्पना रामानी
4 comments:
waah bahut sundar didi ,ek se badhkar ek dohe .badhai blog bhi bahut sundar ho gaya hai ,............:)
Maja aa gaya padkr...badhai!!!
Wowww....bahut hi sundar hai masi!!! :) Shilpa
नारी बिना सूना है यह संसार ......फिर है करते उसपर नामसझ अत्याचार
..बहुत सुन्दर सुकोमल रचना
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