पुत्र बसा परदेस में, पद का चढ़ा बुखार।
सपने अपने ले गया, सात समंदर पार।
फूल दिये थे पुत्र को, पुत्र दे गया शूल।
उसने मन पर मातु के, किया कुठाराघात।
दिनकर सुख देता नहीं, नहीं सुहाती रात।
खुद ही अपने मौन से, करती रहती बात।
आज विदेशी चाह में, युवा हुए मदहोश।
दोषी क्या संतान ही, पालक सब निर्दोष?
खुश होकर संतान को, भेजा खुद से दूर।
देश छोड़ने के लिए, किया उसे मजबूर।-कल्पना रामानी
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