शैशव को बस चाहिए, सहज
स्नेह की डोर।
चल देता है बेखबर, नव जीवन
की ओर।
हर शिशु चलना सीखता, थाम
बड़ों का हाथ।
नई पुरानी पौध का, जनम-जनम
का साथ।
शिशु के कोमल स्पर्श से, होते
वृद्ध प्रसन्न।
खुद को ही वे मानते, दुनिया
में सम्पन्न।
वृद्धावस्था का यही, सबसे सुखद प्रसंग।
नन्हाँ शिशु कर थाम जब, चले
आपके संग।
भोला बचपन भेद से, होता है
अनजान।
मुसकानें है बाँटता, सबको एक
समान।
बुजुर्ग या मासूम शिशु, कहलाते
नादान।
हाव-भाव या चाह में, बालक
वृद्ध समान।
नई पुरानी पौध का, बना
रहे यूँ प्यार।
यही सार संसार का, बाकी
सब निस्सार।
-कल्पना रामानी
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