दीनों की दुनिया अलग, होती
सबसे खास।
आशाओं की पोटली, रहती
इनके पास।
चाहे खरपतवार हो, या बिखरे
हों शूल।
हर विपदा के बाग में, खिलते
ये बनफूल।
बाधाओं की बाढ़ में, जीवन
हो दुश्वार।
थामे रहते किन्तु ये, हिम्मत
की पतवार।
छूटे चाहे आशियाँ, या
रूठे तकदीर।
मगर नहीं है टूटता, इनके
मन का धीर।
शीत, ताप, हिमपात को, सहज मानते मीत।
बारिश भी इनके लिए, कब
लिखती नवगीत।
हाकिम इनके हाल पर, करते
केवल शोर।
इनकी काली रात की, कभी न
होती भोर।
यही प्रार्थना, 'कल्पना', इनको मिले प्रकाश।
विषम भूमि इस देश की, सम हो
पाती काश!
-कल्पना रामानी
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