छन्न पकैया, छन्न पकैया, उड़े रंग के बादल।
पीत, गुलाबी, लाल हुआ है, वसुंधरा का आँचल।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, यह ऋतु सबको भाई।
भँवरों की मनुहार देखकर, कली-कली इतराई।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, गुमीं घटाएँ तम की।
देख रही है जलती होली, जाग रात पूनम की।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, वन पलाश फिर दहके।
रंग सुनहरा देख गगन में, उड़ते पाखी बहके।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, फिरे आम बौराया।
मोर कोकिला ने बागों को, सुर में गीत सुनाया।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, देखा दृश्य विहंगम।
पिचकारी भर खग-मृग लाए, रंग घोलकर अनुपम।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, हुई खूब खिलवाई।
जब सखियों ने भंग मिलाकर, ठंडई घोट पिलाई।
छन्न पकैया, छन्न पकैया , गाएँ गीत शगुन के।
बार-बार जीवन में आएँ, रंग दिवस फागुन के।
-कल्पना रामानी
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