21)
महफिल-महफिल रंग जमाए।
अपने हाथों भंग पिलाए।
मधुर-मदिर लगते उसके गुन,
क्या सखि प्रियतम?
ना सखि, फागुन!
22)
जब से उससे प्रीत लगाई।
घर बाहर होती खिलवाई।
पास न हो तो रहूँ अनमनी,
क्या सखि साजन?
नहीं, लेखनी!
23)
जब जब मेरा मन अकुलाता।
झट बहार बनकर आ जाता।
वो मेरे प्राणों की पुलकन।
क्या सखि प्रियतम?
ना सखि सावन।
24)
सदा नज़र में रखना चाहूँ।
तनिक जुदाई सह ना पाऊँ।
उससे मेरा मोह निराला,
क्या सखि साजन?
ना सखि माला!
25)
सखी! मुझे वो बहुत सताए।
नैन मिलाकर, फिर छिप जाए।
रहे तरसता मन बेचारा,
क्या सखि प्रियतम?
नहीं, सितारा!
26)
अपने मन का भेद छिपाए।
मेरे मन में सेंध लगाए।
रखता मुझ पर नज़र निरंतर।
क्या सखी साजन?
ना सखि, ईश्वर!
27)
हरजाई दिल तोड़ गया है।
मुझे बे खता छोड़ गया है।
नहीं भूल पाता उसको मन।
क्या सखि साजन?
ना सखि बचपन!
28)
जब से उससे प्रीत लगाई।
थामे रहता सदा कलाई।
क्षण भर ढीला करे न बंधन।
क्या सखि साजन?
ना सखि, कंगन!
29)
जब भी देना चाहूँ प्यार।
बेदर्दी कर देता वार।
फिर फिर होती मुझसे भूल,
क्या सखि साजन?
ना सखि शूल!
30)
बागों में जब मुझसे मिलता।
मन मयूर बन सखी! मचलता।
देख-देख कर उसका शबाब!
क्या सखि साजन?
ना री गुलाब!
-कल्पना रामानी
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