अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Friday 6 September 2013

माँ सम हिन्दी भारती


माँ सम हिन्दी भारती, आँचल में भर प्यार।
चली विजय-रथ वाहिनी, सात समंदर पार।
 
सकल भाव इस ह्रदय के, हिन्दी पर कुर्बान।
हिन्दी से ही आज है, मेरा देश महान।
 
इतनी सरला सहज है, क्या क्या करूँ बखान।
अमृत रस की धार सा, इसका छंद विधान।
 
जिस विध लिखें, पढ़ें वही,  कहीं नहीं अटकाव।
जितना प्यारा नाम है, उतने सुंदर भाव।
 
हिन्दी की ही गूँज हो, ऐसा रचें विधान। 
हिन्दी में ही सब करें, हिन्दी का गुणगान।
 
हिन्दी का ही व्याकरण, सबसे सरल सुबोध। 
बढ्ने दें इस बेल को, काट सभी अवरोध।
 
सुगम स्रोत साहित्य का, रस छंदों की खान। 
भाषा यह बेजोड़ है, लिखने में आसान।
 
बहु भाषाएँ सीखिये, सबका हो सम्मान। 
पर हिन्दी को दीजिये, सदा शीर्ष स्थान।
 
हिन्दी से ही शान है, हिन्दी से ही ज्ञान। 
बनी रहे हर हाल में, निजता की पहचान।
 
जो रहते परदेस में, हिन्दी से हैं दूर। 
निकट वही रखते उसे, हिन्दी उनका नूर।
 
अपने ही होंगे अगर, अँग्रेजी के दास। 
कैसे फिर इस देश में, हिन्दी करे विकास।
 
जड़ें जमा लीं विश्व में, ज्यों विशाल वट वृक्ष। 
क्यों पिछड़ी निज देश में, यही प्रश्न है यक्ष।


-कल्पना रामानी

7 comments:

Unknown said...

वह! बहुत ही सुन्दर! आपको सादर नमन!

डॉ० डंडा लखनवी said...

अति सुन्दर ....सराहनीय कदम

virendra sharma said...

हिंदी मधु वृन्दगान

है सबकी मुस्कान।

व्यापे सकल जहान ,

मानुस निज सम्मान

virendra sharma said...

हिंदी मधु वृन्दगान

है सबकी मुस्कान।

व्यापे सकल जहान ,

मानुस निज सम्मान

इस रचना ने हम सबका है मान बढ़ाया ,

मुख चिठ्ठा हम जा फैलाया

माँ सम हिन्दी भारती

http://kalpanasramani.blogspot.com/2013/09/blog-post_6.html?spref=bl
















माँ सम हिन्दी भारती, आँचल में भर प्यार।
चली विजय-रथ वाहिनी, सात समंदर पार।

सकल भाव इस ह्रदय के, हिन्दी पर कुर्बान।
हिन्दी से ही आज है, मेरा देश महान।

इतनी सरला सहज है, क्या क्या करूँ बखान।
अमृत रस की धार सा, इसका छंद विधान।

जिस विध लिखें, पढ़ें वही, कहीं नहीं अटकाव।
जितना प्यारा नाम है, उतने सुंदर भाव।

हिन्दी की ही गूँज हो, ऐसा रचें विधान,
हिन्दी में ही सब करें, हिन्दी का गुणगान।

हिन्दी का ही व्याकरण, सबसे सरल सुबोध,
बढ्ने दें इस बेल को, काट सभी अवरोध।

सुगम स्रोत साहित्य का, रस छंदों की खान,
भाषा यह बेजोड़ है, लिखने में आसान।

बहु भाषाएँ सीखिये, सबका हो सम्मान,
पर हिन्दी को दीजिये, सदा शीर्ष स्थान।

हिन्दी से ही शान है, हिन्दी से ही ज्ञान,
बनी रहे हर हाल में, निजता की पहचान।

जो रहते परदेस में, हिन्दी से हैं दूर,
निकट वही रखते उसे, हिन्दी उनका नूर।

अपने ही होंगे अगर, अँग्रेजी के दास,
कैसे फिर इस देश में, हिन्दी करे विकास।

जड़ें जमा लीं विश्व में, ज्यों विशाल वट वृक्ष,
क्यों पिछड़ी निज देश में, यही प्रश्न है यक्ष।

-------कल्पना रामानी

Maheshwari kaneri said...

बहूत बढिया

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर दोहा हार्दिक शुभकामनाए

मीनाक्षी said...

हिंदी से प्रेम का सुन्दर उदाहरण ! आपकी हर रचना प्रभावशाली होती है !

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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