अगर न सुलझें उलझनें/सब ईश्वर पर छोड़। नित्य प्रार्थना कीजिये/ शांत चित्त कर जोड़।

Wednesday 12 December 2012

शीतल ऋतु आई सखी


शीतल ऋतु आई सखी, पहन नए परिधान।          
चलो दुशाला ओढ़कर, करें धूप का स्नान।
 
एक चटाई धूप की, डलिया भरकर बेर।
जन-मन को हर्षा गया, मौसम का यह फेर।

फटी बिवाई पाँव में, करे हवा हैरान। 
नए रंग दिखला रहा, शीत नया मेहमान।

शीत प्रसाधन चल पड़े, भरने लगे बजार।
ढेरों लोशन क्रीम की, आई ब्रांड बहार।

सर्दी को भाने लगे, सूखे मेवे दूध।
जी भर कर सब खा रहे, हरे मटर अमरूद।  
 
तम्बू ताने शीत ने, डाला आज  पड़ाव।
गाँव गाँव दिखने लगे, जलते हुए अलाव।

-कल्पना रामानी 

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--कल्पना रामानी

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